जयपुर.राजस्थान में हजारों महिलाएं हर साल नसबंदी ऑपरेशन फेल होने की सजा भुगत रही हैं। राजस्थान इस मामले में देश में सबसे अागे है। प्रदेश में हर साल 2000 से ज्यादा नसबंदी ऑपरेशन फेल हो रहे हैं। इतना ही नहीं पिछले दो साल में नसबंदी ऑपरेशन के दौरान 12 महिलाओं की मौत हो गई। इनमें पांच मामले तो ऐसे थे जिनमें संक्रमण और अन्य जटिलताओं के कारण महिलाओं की बच्चेदानी निकालनी पड़ी। हर नसबंदी फेल होने पर 30 हजार रु. मुआवजा राजस्थान में सरकार को हर साल औसतन 8 से 10 करोड़ रु. नसबंदी ऑपरेशन फेल होने की वजह से मुआवजा चुकाना पड़ रहा है। यह राशि केंद्र सरकार वहन करती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार नसबंदी फेल होने पर मुआवजा देने की व्यवस्था वर्ष 2005 से लागू है। मुआवजा राशि निजी बीमा कम्पनी वहन करती है। बीमा का प्रीमियम सरकार चुकाती है। राजस्थान में नसबंदी फेल होने के मामले सर्वाधिक हैं, ऐसे में मुआवजा भी सबसे ज्यादा दिया जा रहा है। नसबंदी फेल होने पर 30 हजार रु. और एक माह के दौरान मौत हो जाने पर 50 हजार रु. का मुआवजा दिया जाता है। कोई भी हर्जाना यह गलती नहीं सुधार सकता तीन बच्चों के कारण करिअर खत्म बीए तक पढ़ी-लिखी सुनीता ने 2012 में दो लड़कियों के जन्म के बाद नसबंदी करा ली। एक साल बाद ही सुनीता ने एक और बच्चे को जन्म दिया। स्वास्थ्य विभाग ने नसबंदी विफल मानते हुए उसेे 30 हजार का मुआवजा भी दे दिया। सुनीता को झटका तब लगा जब हाईकोर्ट की एलडीसी परीक्षा में उसके आवेदन को तीन बच्चों के कारण निरस्त कर दिया गया। नसबंदी ने पत्नी को छीन लिया नागौर निवासी (प्रेम) की पिछले साल नसबंदी के दौरान मौत हो गई। विभाग ने प्रेेम के पति रतनलाल को एक लाख रु. का मुआवजा देकर अपनी गलती पर पर्दा डाल दिया। अब रतनलाल मजदूरी भी करता है। घर आकर तीन बच्चों को भी संभालता है। वो आज भी उस घड़ी को कोसता है, जिसमें उसने पत्नी की नसबंदी का फैसला लिया था। प्रयास के पास पिछले दो साल में नसबंदी फेल होने के 43 मामले आए हैं जिनमें से 38 में न्यायालय ने मुआवजे के आदेश दिए हैं। इन मामलों में विभाग तो उदासीन ही बना रहा। नसबंदी फेल होने के सरकार जो आंकड़ें बता रही है वह बहुत कम हैं, अधिकांश मामले तो रजिस्टर्ड ही नहीं हो पाते।